Tuesday 3 January 2012

kai hai sach

सरकार हमेशा यही दिखने की कोशिश करती है की उसका हर काम पारदर्शी है .......पर सच कुछ और ही है आइये आपको सफ़ेद पोश अपराध का एक उदहारण दिखाते है .......देश के पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे है .ज्यादातर उमीदवार पार्टियो से ही लड़ते है और पार्टी को ज्यादातर भारतीय वर्षो से जानते है .........पर देश में कोई भी चुनाव लड़ सकता है ..लोकतंत्र में इसकी छूट है ...........सबसे पहले देखिये जमानत की फीस .....१०००० दस हज़ार रुपये यानि मोंटेक सिंह अहलुवालिया के अनुसार शहरी व्यक्ति को रोज ३२ रुपये और देहाती व्यक्ति को २८ रुपये चाहिए ....मतलब साफ़ है कि शहरी व्यक्ति के पास ३२*३६५=११६८० रुपये वार्षिक होते है और ग्रामीण क्षेत्र  के व्यक्ति के पास २८*३६५=१०२२० वार्षिक  यानि देहस में शहर और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाला चुनाव लड़ ही नही सकता क्यों कि १०००० कि रकम वो कहा से लायेगा ....तो फिर कौन लोग इस प्रजातांत्रिक देश में चुनाव लड़ सकते है .जिनके पास पैसा हो .ऐसे में भ्रष्टाचार बढ़ना स्वाभाविक है क्योकि चुनाव लड़ने के लिए १०००० रुपये जमानत और  पुरे चुनाव का खर्चा १६ लाख रुपये अधिकारिक रूप से खर्च करने के लिए एक आम आदमी कहा से पैसे लायेगा ?????????या तो सिर्फ अमीर आदमी चुनाव लड़े या फिर वो किसी पार्टी के आगे भिखारी कि तरह खड़ा रहे और अपनी पार्टी के हर जायज़ और नाजायज़ कामो में सहयोग करे क्योकि इतना पैसा पार्टी ही दे सकती है .या फिर एक आम आदमी घूसखोर, लुटेरा , अन्तंक्वादी गतविधियो में सम्मिलित होकर इतना पैसा बटोरे ............क्या एक आम आदमी १६ लाख रुपये चुनाव में लगा सकता है ......पार्टी पैसा कहा से लती है , कहने कि जरूरत नही है .जिस देश में लोग बिना खाने के मर जाते है ..बिना इलाज के दम तोड़ देते है ...पैसे के कारण पढाई नही कर पाते है ..लडकियो को गलत काम के लिए उकसाया जाता है ..उसी देश में धनपति पार्टियो को अनुदान और सहायता राशि देते है ताकि वो चुनाव में लड़ सके और पार्टी अपना काम कर सके ...क्या इस तरह के अनुदान पर आपको विश्वास आ सकता है ????????क्या वास्तव में धनकुबेर सिर्फ इस लिए पैसा दे रहे है ताकि पार्टी खड़ी रहे या फिर उनके गलत उद्देश्य कहा से पूरे हो सकते है , ये धन कुबेरों को पता है ,इसी लिए बिना सोचे समझे वो अंधे कि तरह पार्टियो को सहायता पहुचाते है ....जबकि एक नवजात बच्चा बिना ढूध के इस देश में मर जाता है ..........इतनी कडवी सच्चाई के बाद भी ना तो देश में ईमानदार लोगो की कमी है और ना ही भर्ष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालो की कमी है ....और लोगो को लगता है अभी भी भर्ष्टाचार के दर्द से सभी उबरना चाहते है ..यही कारण है कि ना जाने कितने भारतीय किसी भी पार्टी से ना जुड़ने के बाद भी निर्दलिये उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का साहस जुटा रहे है ...अब फिर देखिये सफ़ेद पोश अपराध का करिश्मा , पार्टियो के पास चुनाव चिन्ह बराबर रहता है और देश कि जनता उनके चुनाव चिन्ह से परचित रहते है ....लोग व्यक्ति से ज्यादा चुनाव चिन्ह से परिचित रहते है और यही कारण है कि पार्टी का दबदबा चुनाव में बना रहता है  लेकिन जो निर्दलिये लड़ते है उनके पास ना तो पार्टी होती है और ना ही चुनाव चिन्ह ....एक उदहारण से आप  शायद समझ पाएंगे, उत्तर प्रदेश के लखनऊ १७५ कैंट क्षेत्र में चुनाव १९ फ़रवरी को है , नामांकन की अंतिम तिथि १ फ़रवरी है ....नामाकन वापस लेने की तिथि ४ फ़रवरी है .इसके बाद कम से कम २-३ दिन लग जायेंगे चुनाव चिन्ह निर्धारित होने में यानि तारीख हो जाएगी ८ या ९ फ़रवरी .........४८ घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद हो जाता है यानि १७ तारीख के बाद प्रचार नही होगा ......९ से १६ के बीच बचे दिन कुल ७??????क्या ७ दिन में एक निर्दलिये उम्मीदवार अपने क्षेत्र के लोगो को अपना चुनाव चिन्ह बता पायेगा , जब कि बैलेट  पेपर  या मशीन पर चुनाव चिन्ह ही होते है .अब जब चुनाव चिन्ह ही लोगो को नही पता होगा तो वो वोट किसे डालेंगे और क्या भ्रष्टाचार  मिटायेंगे.और इस से साफ़ जाहिर है ही सरकार कभी भी निर्दलिये lo गो के जितने के पक्ष में नही रही .और यह सफ़ेद पोश अपराध हमें नही दिखाई देता है ...................सरकार को चाहिए कि उमीदवार जो चाहे वही चुनाव चिन्ह दे दे और फिर आज तो साइबर का जमाना है ......वह से पता चल जायेगा कि कही दो लोगो को तो एक चुनाव चिन्ह नही मिल गया ....यह है हमारे लोक तंर के चुनाव की हकीकत ,जिस पर ना तो हम सोचना चाहते है और ना ही आवाज़ उठाना ...या यह भ्रष्टाचार नही है ........क्या आम आदमी के लिए विधान सभा और संसद का रास्ता वास्तव में जाता है ..अपने अधिकारों को पहचानिए और अखिल भारतीय अधिकार संगठन यही चाहता है कि सभी भारतीय अधिकारों का असली मतलब जाने और एक अपराध और मानवाधिकार उल्लंघन मुक्त समाज का निर्माण करे .....अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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