Wednesday 4 January 2012

Think About It....

क्या आप भ्रष्टाचार वास्तव में मिटाना चाहते है ??????????????? तो चलिए हम आप को बताते है कि आप क्या कर सकते है ....देश के पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे है ....आप में से ज्यादा तर यही सोच रहे होंगे कि फिर वही गलत लोग सामने होंगे और वोट मांगेगे ..और आपके पास कोई विकल्प नही होता ....इसी लिए आप अक्सर वोट वाले दिन घर से निकलते ही नही और मान लेते है कि आपने विरोध कर दिया पर ये तो उन लोगो का रास्ता और सरल बना देता है ........क्योकि जब १०० लोगो में सिर्फ २० लोग ही वोट डालेंगे और ५ उम्मीदवार होंगे तो अगर सबको १०-१० वोट मिले तो जिसे भी ११ वोट मिल जायेगा वो जीत जायेगा जबकि उसको पसंद न करने वाले ८९ लोग थे .ऐसे में आप एक गंभीर नागरिक बने और पीपुल representative एक्ट की धरा ४९ (ओ) में यह लिखा है हमें राईट टू रिजेक्सन का अधिकार है ..जब आप वोट डाले जाये और आपको लगता है कि कोई भी वोट पाने के योग्य नही है तो आप वह बैठे चुनाव अधिकारी से कह सकते है कि वो आप को रजिस्टर दे ..जो हर पोलिंग बूथ पर रहता है .आप रजिस्टर लेकर उसमे धारा १७-अ के अंतर्गत यह लिख सकते है कि आपको वोटर लिस्ट का कोई भी उम्मीदवार पसंद नही है ..अब आप सोचिये अगर १०० में ५१ लोगो ने लिख दिया कि उन्हें कोई उम्मीदवार पसंद नही है तो स्पष्ट है कि चुनाव निरस्त हो जायेगा .और हर पार्टी के पास यह मज़बूरी होगी कि वो इमानदार और सच्चे लोगो को ही टिकट दे ........और आपके इस प्रयास से भारत एक भ्रष्टाचार मुक्त देश ही नही बनेगा बल्कि संसद और विधान सभा सब जगह ऐसे लोग होंगे जो इस देश के लिए , यह की जनता के लिए सोचते है .और हम सब को एक जन लोक पाल बनाने के लिए इतने निराशजनक स्थिति से कभी नही गुजरना पड़ेगा ..क्या अखिल भारतीय अधिकार संगठन के इस प्रयास में सहयोग करेंगे ??????????????क्या अखिल भारतीय अधिकार संगठन से आप सहमत है ??????????आप क्या करेंगे इस देश के लिए ?????????????????

Tuesday 3 January 2012

just think as an Indian

किसी भी आन्दोलन का चलना इस बात पर निर्भर करता है कि उसमे रणनीति कैसी है और उनके पास आन्दोलन को चलने वाले प्रणेता कौन कौन है ...अन्ना के आन्दोलन में बराबर मै एक अनशनकारी के रूप में बराबर जुडा रहा  पर मुझे सबसे ज्यादा निम्न कारण लगते है जिसके कारण अन्ना का आन्दोलन जे पी आन्दोलन की तरह ही फेल होता दिखा
१..अन्ना की तरह दुसरे नेता की कमी .कोई भी दूसरा व्यक्ति अन्ना आन्दोलन में उनके बराबर नही आ सका ..जिसके कारण जब अन्ना की तबियत खराब हुई तो उनके बीच में कोई ऐसा नही था जो अन्ना की जगह ले सकता .
२.. अन्ना की तरह साफ़ छवि वाले लोगो की टीम में कमी , अरविन्द केजरीवाल , किरण बेदी, बिस्वास अदि पर जिस तरह से आरोप लगे उस से भी देश की जनता को यही सन्देश गया कि अन्ना के साथ भी सब सही लोग नही है ...
३..अन्ना के पास जल्दी जल्दी अनशन करने कि कोई वजह नही थी
४...आना के साथ काम करने वाले या तो गैर सरकारी संगठन बना कर पैसा कम रहे है या फिर उनके घर में लोग नौकरी कर है .पर आने वाली देश की जनता के जीवन का कोई भविष्य नही दिखया गया
४..ठंडक भी एक बड़ा कारण रहा ,इस आन्दोलन के फेल होने में
५.मोहमम्द तुगलक की तरह देल्ही से तुगलकाबाद करने यानि आन्दोलन की जगह बदलने के कर्ण आन्दोलन फेल हुआ ...
६...संसद में बहस को सुन ने की ललक के कारण जनता ने सडको और आन्दोलन स्थल पर जाने के बजाये घरो में बैठ कर टी.व्. पर बहस देखना ज्यादा अच्छा लगा ...
७.. बहुत से लोग यही नही समझ पाए कि जन लोक पाल बन जाने से क्या भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा ...
८..जनता में यह भी सन्देश गया कि आन्दोलन में जो लोग जुड़े है वो लोग राजनीतिक लाभ के लिए आन्दोलन चला  रहे है ..
९...लोगो को ढंग से यही नही पता कि जन लोक पाल है क्या ????????????
१०..गाँव तक यह आन्दोलन नही पंहुचा और शहर के लोग ज्यादा देर अनशन में दे नही सकते .देश में ८०% जनसँख्या गाँव में रहने के कारण यह आन्दोलन शुरू से ही २०% लोगो तक सीमित था..
११..महाराष्ट्र में अन्ना चुनाव में पहले भी कोई चमत्कार नही कर सके है और वहा के लोग यह जानते है कि आन्दोलन तो अन्ना का रोज का काम है .इस लिए उन्होंने बिलकुल रूचि नही ली ..............
१२..प्रशांत भूषण का कश्मीर पर बयां और संजय सिंह जैसे राजनीतिक लाभ लेने वाले लोगो कि अगुवाई में दिल्ली में तो शुन्य परिणाम रहना ही था
१३..लखनऊ में अनशनकारियो को बेकार दवा बाटने और आन्दोलन के पैसे का हिसाब न देने के कारण शहर के लोग ऐसे अन्ना समर्थको से दूर हो गए
१४.. इन सब के अतिरिक्त यह सब से महत्वपूर्ण रहा कि अन्ना सिर्फ कांग्रेस के विरुद्ध ही बोलने लगे , जिस से लोगो को यह लगा कि अन्ना किसी पार्टी से मिले हुए है और उसी के लिए काम कर रहे है और देश की जनता ने इस बात को इतनी गंभीरता से ले लिया कि उन्हें यह आन्दोलन भ्रष्टाचार से ज्यादा सत्ता की लड़ाई का कारण बनता दिखाई देने लगा .और पूरा आन्दोलन ध्वस्त होता दिखाई दिया ...
१५..देश में लोगो ने भारतीय बन कर नही बल्कि पार्टी , का बन कर ज्यादा इस आन्दोलन को देखा .इस लिए फेल हुआ ..
क्या अधिकारों के लिए की गई सबसे बड़ी स्वतंत्रता के बाद की लड़ाई सिर्फ दूरदर्शिता की कमी और लोगो में राष्ट्रियेता की कमी के कारण ध्वस्त नही हुआ ...................हम भारतवासी बनकर ज्यादा इस आन्दोलन को देखते रहे जब कि देखना भारतीय बन कर चाहिए था .अखिल भारतीय अधिकार संगठन तो ऐसा ही सोचता है पर आप क्या सोचते है नही कहेंगे ........................

kai hai sach

सरकार हमेशा यही दिखने की कोशिश करती है की उसका हर काम पारदर्शी है .......पर सच कुछ और ही है आइये आपको सफ़ेद पोश अपराध का एक उदहारण दिखाते है .......देश के पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे है .ज्यादातर उमीदवार पार्टियो से ही लड़ते है और पार्टी को ज्यादातर भारतीय वर्षो से जानते है .........पर देश में कोई भी चुनाव लड़ सकता है ..लोकतंत्र में इसकी छूट है ...........सबसे पहले देखिये जमानत की फीस .....१०००० दस हज़ार रुपये यानि मोंटेक सिंह अहलुवालिया के अनुसार शहरी व्यक्ति को रोज ३२ रुपये और देहाती व्यक्ति को २८ रुपये चाहिए ....मतलब साफ़ है कि शहरी व्यक्ति के पास ३२*३६५=११६८० रुपये वार्षिक होते है और ग्रामीण क्षेत्र  के व्यक्ति के पास २८*३६५=१०२२० वार्षिक  यानि देहस में शहर और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाला चुनाव लड़ ही नही सकता क्यों कि १०००० कि रकम वो कहा से लायेगा ....तो फिर कौन लोग इस प्रजातांत्रिक देश में चुनाव लड़ सकते है .जिनके पास पैसा हो .ऐसे में भ्रष्टाचार बढ़ना स्वाभाविक है क्योकि चुनाव लड़ने के लिए १०००० रुपये जमानत और  पुरे चुनाव का खर्चा १६ लाख रुपये अधिकारिक रूप से खर्च करने के लिए एक आम आदमी कहा से पैसे लायेगा ?????????या तो सिर्फ अमीर आदमी चुनाव लड़े या फिर वो किसी पार्टी के आगे भिखारी कि तरह खड़ा रहे और अपनी पार्टी के हर जायज़ और नाजायज़ कामो में सहयोग करे क्योकि इतना पैसा पार्टी ही दे सकती है .या फिर एक आम आदमी घूसखोर, लुटेरा , अन्तंक्वादी गतविधियो में सम्मिलित होकर इतना पैसा बटोरे ............क्या एक आम आदमी १६ लाख रुपये चुनाव में लगा सकता है ......पार्टी पैसा कहा से लती है , कहने कि जरूरत नही है .जिस देश में लोग बिना खाने के मर जाते है ..बिना इलाज के दम तोड़ देते है ...पैसे के कारण पढाई नही कर पाते है ..लडकियो को गलत काम के लिए उकसाया जाता है ..उसी देश में धनपति पार्टियो को अनुदान और सहायता राशि देते है ताकि वो चुनाव में लड़ सके और पार्टी अपना काम कर सके ...क्या इस तरह के अनुदान पर आपको विश्वास आ सकता है ????????क्या वास्तव में धनकुबेर सिर्फ इस लिए पैसा दे रहे है ताकि पार्टी खड़ी रहे या फिर उनके गलत उद्देश्य कहा से पूरे हो सकते है , ये धन कुबेरों को पता है ,इसी लिए बिना सोचे समझे वो अंधे कि तरह पार्टियो को सहायता पहुचाते है ....जबकि एक नवजात बच्चा बिना ढूध के इस देश में मर जाता है ..........इतनी कडवी सच्चाई के बाद भी ना तो देश में ईमानदार लोगो की कमी है और ना ही भर्ष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालो की कमी है ....और लोगो को लगता है अभी भी भर्ष्टाचार के दर्द से सभी उबरना चाहते है ..यही कारण है कि ना जाने कितने भारतीय किसी भी पार्टी से ना जुड़ने के बाद भी निर्दलिये उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का साहस जुटा रहे है ...अब फिर देखिये सफ़ेद पोश अपराध का करिश्मा , पार्टियो के पास चुनाव चिन्ह बराबर रहता है और देश कि जनता उनके चुनाव चिन्ह से परचित रहते है ....लोग व्यक्ति से ज्यादा चुनाव चिन्ह से परिचित रहते है और यही कारण है कि पार्टी का दबदबा चुनाव में बना रहता है  लेकिन जो निर्दलिये लड़ते है उनके पास ना तो पार्टी होती है और ना ही चुनाव चिन्ह ....एक उदहारण से आप  शायद समझ पाएंगे, उत्तर प्रदेश के लखनऊ १७५ कैंट क्षेत्र में चुनाव १९ फ़रवरी को है , नामांकन की अंतिम तिथि १ फ़रवरी है ....नामाकन वापस लेने की तिथि ४ फ़रवरी है .इसके बाद कम से कम २-३ दिन लग जायेंगे चुनाव चिन्ह निर्धारित होने में यानि तारीख हो जाएगी ८ या ९ फ़रवरी .........४८ घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद हो जाता है यानि १७ तारीख के बाद प्रचार नही होगा ......९ से १६ के बीच बचे दिन कुल ७??????क्या ७ दिन में एक निर्दलिये उम्मीदवार अपने क्षेत्र के लोगो को अपना चुनाव चिन्ह बता पायेगा , जब कि बैलेट  पेपर  या मशीन पर चुनाव चिन्ह ही होते है .अब जब चुनाव चिन्ह ही लोगो को नही पता होगा तो वो वोट किसे डालेंगे और क्या भ्रष्टाचार  मिटायेंगे.और इस से साफ़ जाहिर है ही सरकार कभी भी निर्दलिये lo गो के जितने के पक्ष में नही रही .और यह सफ़ेद पोश अपराध हमें नही दिखाई देता है ...................सरकार को चाहिए कि उमीदवार जो चाहे वही चुनाव चिन्ह दे दे और फिर आज तो साइबर का जमाना है ......वह से पता चल जायेगा कि कही दो लोगो को तो एक चुनाव चिन्ह नही मिल गया ....यह है हमारे लोक तंर के चुनाव की हकीकत ,जिस पर ना तो हम सोचना चाहते है और ना ही आवाज़ उठाना ...या यह भ्रष्टाचार नही है ........क्या आम आदमी के लिए विधान सभा और संसद का रास्ता वास्तव में जाता है ..अपने अधिकारों को पहचानिए और अखिल भारतीय अधिकार संगठन यही चाहता है कि सभी भारतीय अधिकारों का असली मतलब जाने और एक अपराध और मानवाधिकार उल्लंघन मुक्त समाज का निर्माण करे .....अखिल भारतीय अधिकार संगठन