Saturday 18 February 2012

right to life

India's Supreme Court has asked groups challenging a 2009 landmark judgement decriminalising gay sex in the country how "unnatural sex" should be defined.
The ruling overturned a 148-year-old colonial law which described a same-sex relationship as an "unnatural offence".
Under it homosexual acts were punishable by a 10-year prison term.
Many people in India still regard same-sex relationships as illegitimate, but rights groups have long argued that the law contravened human rights.
Section 377 of the colonial Indian Penal Code defined homosexual acts as "carnal intercourse against the order of nature" and made them illegal.
The 2009 Delhi High Court ruling is being challenged by political, social and religious groups who want to have colonial-era law reinstated.
On Wednesday, the court begun a debate on the legality of decriminalising gay sex in private between consenting adults.
"So who is the expert to say what is 'unnatural sex'? The meaning of the word has never been constant," Justices GS Singhvi and SJ Mukhopadhyaya asked a petitioner who challenged the judgement.
"We have travelled a distance of 60 years. Now it is test-tube babies, surrogate mothers. They are called discoveries. Is it in the order of nature? Is there carnal intercourse?" the judges said.
In July 2009 the Delhi High Court described the colonial-era law as discriminatory and said gay sex between consenting adults should not be treated as a crime.
Later the Supreme Court refused to put the judgement on hold after it was challenged by an astrologer and a yoga guru.
The ruling was widely and visibly welcomed by India's gay community, which said the judgement would help protect them from harassment and persecution.

Tuesday 7 February 2012

Public Demands....

आज उत्तर प्रदेश के चुनाव शुरू होने के एक दिन पहले अखिल भारतीय अधिकार संगठन के केन्द्रीय कार्यालय पर एक आवश्यक बैठक आहूत की गई जिसका उद्देश्य सभी पार्टियो को संगठन के घोषणा पत्र से अवगत कराना है और सभी पार्टियो से यह अनुरोध किया गया की यदि वे वास्तव में राष्ट्र और प्रदेश के लिए जीते है और उसके ही उत्थान के लिए राजनीति और सत्ता केलिए  प्रयास कर रहे है तो निम्न विन्दुओ को अपने चुनावी घोषणा पत्र में सम्मिलित करे और भविष्य में उनका सार्थक प्रयोग करते हुए एक मजबूत प्रदेश और राष्ट्र का निर्माण करे .....संगठन के महासचिव ने निम्न घोषणा पत्र के निम्न बिन्दुओ को प्रस्तुत किया ----
१- जिस तरह नेताओ को विधायक बनने पर तमाम तरह के भत्ते मिलते है , सुविधाए मिलती है , उसी तरह मतदाता को भी उसे मत के लिए कुछ भत्ते दिए जाये जिसे वोटरशिप कहा.....क्यों की मत पाकर सुविधा  पाने वाले से ज्यादा मत देने वाले का सुविधा पाने का अधिकार होना चाहिए
२- वोटरशिप के लिए प्रयाप्त धन और संसाधन सरकार एकत्र करे ....भारत में प्रति व्यक्ति आय के आधे धन का प्रयोग वोटरशिप के लिए किया जाये ..ताकि भारत कि समस्त जनसँख्या गरीबी कि रेखा से ऊपर आ  सके .
३- महिलाओ के लिए राष्ट्रिय स्तर पर समान विधि हो ...क्यों कि लड़की कि विवाह कि आयु १८ वर्ष निर्धारित है ...और सहमती से वह १६ वर्ष से ही किसी के साथ रह सकती है ....इस २ वर्ष कि अवधि का फायेदा अपराधी , कोर्ट लेकर लड़की की गरिमा को ठेस पहुचाते है .इस लिए लड़की के लिए कानून समान हो ...उम्र के आदर पर फायेदा देना अपराधीकरण को बढ़ावा देना है
४- शिक्षा को इतनी सस्ती जरुर रखा जाये कि देश का हर संवैधानिक व्यक्ति शिक्षा पा सके ...अर्थात शिक्षा का मुल्यांकन आर्थिक आधार पर हो न कि जाति के आधार पर
५ - आरक्षण का आधार आर्थिक बनाया जाये न कि जाति ..जब कि देश का संविधान हम भारत के लोग कि बात करता है
६- जनसँख्या निति देश की जनता के लिए बने जाये न की हर धर्म जाति को ध्यान
 में रख कर
सभी लोगो ने इस घोषणा पत्र पर सहमती जताई और इसे सभी प्रमुख पार्टियो को भेजने का प्रस्ताव किया
प्रेषक
डॉ आलोक चान्टिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Wednesday 4 January 2012

Think About It....

क्या आप भ्रष्टाचार वास्तव में मिटाना चाहते है ??????????????? तो चलिए हम आप को बताते है कि आप क्या कर सकते है ....देश के पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे है ....आप में से ज्यादा तर यही सोच रहे होंगे कि फिर वही गलत लोग सामने होंगे और वोट मांगेगे ..और आपके पास कोई विकल्प नही होता ....इसी लिए आप अक्सर वोट वाले दिन घर से निकलते ही नही और मान लेते है कि आपने विरोध कर दिया पर ये तो उन लोगो का रास्ता और सरल बना देता है ........क्योकि जब १०० लोगो में सिर्फ २० लोग ही वोट डालेंगे और ५ उम्मीदवार होंगे तो अगर सबको १०-१० वोट मिले तो जिसे भी ११ वोट मिल जायेगा वो जीत जायेगा जबकि उसको पसंद न करने वाले ८९ लोग थे .ऐसे में आप एक गंभीर नागरिक बने और पीपुल representative एक्ट की धरा ४९ (ओ) में यह लिखा है हमें राईट टू रिजेक्सन का अधिकार है ..जब आप वोट डाले जाये और आपको लगता है कि कोई भी वोट पाने के योग्य नही है तो आप वह बैठे चुनाव अधिकारी से कह सकते है कि वो आप को रजिस्टर दे ..जो हर पोलिंग बूथ पर रहता है .आप रजिस्टर लेकर उसमे धारा १७-अ के अंतर्गत यह लिख सकते है कि आपको वोटर लिस्ट का कोई भी उम्मीदवार पसंद नही है ..अब आप सोचिये अगर १०० में ५१ लोगो ने लिख दिया कि उन्हें कोई उम्मीदवार पसंद नही है तो स्पष्ट है कि चुनाव निरस्त हो जायेगा .और हर पार्टी के पास यह मज़बूरी होगी कि वो इमानदार और सच्चे लोगो को ही टिकट दे ........और आपके इस प्रयास से भारत एक भ्रष्टाचार मुक्त देश ही नही बनेगा बल्कि संसद और विधान सभा सब जगह ऐसे लोग होंगे जो इस देश के लिए , यह की जनता के लिए सोचते है .और हम सब को एक जन लोक पाल बनाने के लिए इतने निराशजनक स्थिति से कभी नही गुजरना पड़ेगा ..क्या अखिल भारतीय अधिकार संगठन के इस प्रयास में सहयोग करेंगे ??????????????क्या अखिल भारतीय अधिकार संगठन से आप सहमत है ??????????आप क्या करेंगे इस देश के लिए ?????????????????

Tuesday 3 January 2012

just think as an Indian

किसी भी आन्दोलन का चलना इस बात पर निर्भर करता है कि उसमे रणनीति कैसी है और उनके पास आन्दोलन को चलने वाले प्रणेता कौन कौन है ...अन्ना के आन्दोलन में बराबर मै एक अनशनकारी के रूप में बराबर जुडा रहा  पर मुझे सबसे ज्यादा निम्न कारण लगते है जिसके कारण अन्ना का आन्दोलन जे पी आन्दोलन की तरह ही फेल होता दिखा
१..अन्ना की तरह दुसरे नेता की कमी .कोई भी दूसरा व्यक्ति अन्ना आन्दोलन में उनके बराबर नही आ सका ..जिसके कारण जब अन्ना की तबियत खराब हुई तो उनके बीच में कोई ऐसा नही था जो अन्ना की जगह ले सकता .
२.. अन्ना की तरह साफ़ छवि वाले लोगो की टीम में कमी , अरविन्द केजरीवाल , किरण बेदी, बिस्वास अदि पर जिस तरह से आरोप लगे उस से भी देश की जनता को यही सन्देश गया कि अन्ना के साथ भी सब सही लोग नही है ...
३..अन्ना के पास जल्दी जल्दी अनशन करने कि कोई वजह नही थी
४...आना के साथ काम करने वाले या तो गैर सरकारी संगठन बना कर पैसा कम रहे है या फिर उनके घर में लोग नौकरी कर है .पर आने वाली देश की जनता के जीवन का कोई भविष्य नही दिखया गया
४..ठंडक भी एक बड़ा कारण रहा ,इस आन्दोलन के फेल होने में
५.मोहमम्द तुगलक की तरह देल्ही से तुगलकाबाद करने यानि आन्दोलन की जगह बदलने के कर्ण आन्दोलन फेल हुआ ...
६...संसद में बहस को सुन ने की ललक के कारण जनता ने सडको और आन्दोलन स्थल पर जाने के बजाये घरो में बैठ कर टी.व्. पर बहस देखना ज्यादा अच्छा लगा ...
७.. बहुत से लोग यही नही समझ पाए कि जन लोक पाल बन जाने से क्या भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा ...
८..जनता में यह भी सन्देश गया कि आन्दोलन में जो लोग जुड़े है वो लोग राजनीतिक लाभ के लिए आन्दोलन चला  रहे है ..
९...लोगो को ढंग से यही नही पता कि जन लोक पाल है क्या ????????????
१०..गाँव तक यह आन्दोलन नही पंहुचा और शहर के लोग ज्यादा देर अनशन में दे नही सकते .देश में ८०% जनसँख्या गाँव में रहने के कारण यह आन्दोलन शुरू से ही २०% लोगो तक सीमित था..
११..महाराष्ट्र में अन्ना चुनाव में पहले भी कोई चमत्कार नही कर सके है और वहा के लोग यह जानते है कि आन्दोलन तो अन्ना का रोज का काम है .इस लिए उन्होंने बिलकुल रूचि नही ली ..............
१२..प्रशांत भूषण का कश्मीर पर बयां और संजय सिंह जैसे राजनीतिक लाभ लेने वाले लोगो कि अगुवाई में दिल्ली में तो शुन्य परिणाम रहना ही था
१३..लखनऊ में अनशनकारियो को बेकार दवा बाटने और आन्दोलन के पैसे का हिसाब न देने के कारण शहर के लोग ऐसे अन्ना समर्थको से दूर हो गए
१४.. इन सब के अतिरिक्त यह सब से महत्वपूर्ण रहा कि अन्ना सिर्फ कांग्रेस के विरुद्ध ही बोलने लगे , जिस से लोगो को यह लगा कि अन्ना किसी पार्टी से मिले हुए है और उसी के लिए काम कर रहे है और देश की जनता ने इस बात को इतनी गंभीरता से ले लिया कि उन्हें यह आन्दोलन भ्रष्टाचार से ज्यादा सत्ता की लड़ाई का कारण बनता दिखाई देने लगा .और पूरा आन्दोलन ध्वस्त होता दिखाई दिया ...
१५..देश में लोगो ने भारतीय बन कर नही बल्कि पार्टी , का बन कर ज्यादा इस आन्दोलन को देखा .इस लिए फेल हुआ ..
क्या अधिकारों के लिए की गई सबसे बड़ी स्वतंत्रता के बाद की लड़ाई सिर्फ दूरदर्शिता की कमी और लोगो में राष्ट्रियेता की कमी के कारण ध्वस्त नही हुआ ...................हम भारतवासी बनकर ज्यादा इस आन्दोलन को देखते रहे जब कि देखना भारतीय बन कर चाहिए था .अखिल भारतीय अधिकार संगठन तो ऐसा ही सोचता है पर आप क्या सोचते है नही कहेंगे ........................

kai hai sach

सरकार हमेशा यही दिखने की कोशिश करती है की उसका हर काम पारदर्शी है .......पर सच कुछ और ही है आइये आपको सफ़ेद पोश अपराध का एक उदहारण दिखाते है .......देश के पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे है .ज्यादातर उमीदवार पार्टियो से ही लड़ते है और पार्टी को ज्यादातर भारतीय वर्षो से जानते है .........पर देश में कोई भी चुनाव लड़ सकता है ..लोकतंत्र में इसकी छूट है ...........सबसे पहले देखिये जमानत की फीस .....१०००० दस हज़ार रुपये यानि मोंटेक सिंह अहलुवालिया के अनुसार शहरी व्यक्ति को रोज ३२ रुपये और देहाती व्यक्ति को २८ रुपये चाहिए ....मतलब साफ़ है कि शहरी व्यक्ति के पास ३२*३६५=११६८० रुपये वार्षिक होते है और ग्रामीण क्षेत्र  के व्यक्ति के पास २८*३६५=१०२२० वार्षिक  यानि देहस में शहर और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाला चुनाव लड़ ही नही सकता क्यों कि १०००० कि रकम वो कहा से लायेगा ....तो फिर कौन लोग इस प्रजातांत्रिक देश में चुनाव लड़ सकते है .जिनके पास पैसा हो .ऐसे में भ्रष्टाचार बढ़ना स्वाभाविक है क्योकि चुनाव लड़ने के लिए १०००० रुपये जमानत और  पुरे चुनाव का खर्चा १६ लाख रुपये अधिकारिक रूप से खर्च करने के लिए एक आम आदमी कहा से पैसे लायेगा ?????????या तो सिर्फ अमीर आदमी चुनाव लड़े या फिर वो किसी पार्टी के आगे भिखारी कि तरह खड़ा रहे और अपनी पार्टी के हर जायज़ और नाजायज़ कामो में सहयोग करे क्योकि इतना पैसा पार्टी ही दे सकती है .या फिर एक आम आदमी घूसखोर, लुटेरा , अन्तंक्वादी गतविधियो में सम्मिलित होकर इतना पैसा बटोरे ............क्या एक आम आदमी १६ लाख रुपये चुनाव में लगा सकता है ......पार्टी पैसा कहा से लती है , कहने कि जरूरत नही है .जिस देश में लोग बिना खाने के मर जाते है ..बिना इलाज के दम तोड़ देते है ...पैसे के कारण पढाई नही कर पाते है ..लडकियो को गलत काम के लिए उकसाया जाता है ..उसी देश में धनपति पार्टियो को अनुदान और सहायता राशि देते है ताकि वो चुनाव में लड़ सके और पार्टी अपना काम कर सके ...क्या इस तरह के अनुदान पर आपको विश्वास आ सकता है ????????क्या वास्तव में धनकुबेर सिर्फ इस लिए पैसा दे रहे है ताकि पार्टी खड़ी रहे या फिर उनके गलत उद्देश्य कहा से पूरे हो सकते है , ये धन कुबेरों को पता है ,इसी लिए बिना सोचे समझे वो अंधे कि तरह पार्टियो को सहायता पहुचाते है ....जबकि एक नवजात बच्चा बिना ढूध के इस देश में मर जाता है ..........इतनी कडवी सच्चाई के बाद भी ना तो देश में ईमानदार लोगो की कमी है और ना ही भर्ष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालो की कमी है ....और लोगो को लगता है अभी भी भर्ष्टाचार के दर्द से सभी उबरना चाहते है ..यही कारण है कि ना जाने कितने भारतीय किसी भी पार्टी से ना जुड़ने के बाद भी निर्दलिये उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का साहस जुटा रहे है ...अब फिर देखिये सफ़ेद पोश अपराध का करिश्मा , पार्टियो के पास चुनाव चिन्ह बराबर रहता है और देश कि जनता उनके चुनाव चिन्ह से परचित रहते है ....लोग व्यक्ति से ज्यादा चुनाव चिन्ह से परिचित रहते है और यही कारण है कि पार्टी का दबदबा चुनाव में बना रहता है  लेकिन जो निर्दलिये लड़ते है उनके पास ना तो पार्टी होती है और ना ही चुनाव चिन्ह ....एक उदहारण से आप  शायद समझ पाएंगे, उत्तर प्रदेश के लखनऊ १७५ कैंट क्षेत्र में चुनाव १९ फ़रवरी को है , नामांकन की अंतिम तिथि १ फ़रवरी है ....नामाकन वापस लेने की तिथि ४ फ़रवरी है .इसके बाद कम से कम २-३ दिन लग जायेंगे चुनाव चिन्ह निर्धारित होने में यानि तारीख हो जाएगी ८ या ९ फ़रवरी .........४८ घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद हो जाता है यानि १७ तारीख के बाद प्रचार नही होगा ......९ से १६ के बीच बचे दिन कुल ७??????क्या ७ दिन में एक निर्दलिये उम्मीदवार अपने क्षेत्र के लोगो को अपना चुनाव चिन्ह बता पायेगा , जब कि बैलेट  पेपर  या मशीन पर चुनाव चिन्ह ही होते है .अब जब चुनाव चिन्ह ही लोगो को नही पता होगा तो वो वोट किसे डालेंगे और क्या भ्रष्टाचार  मिटायेंगे.और इस से साफ़ जाहिर है ही सरकार कभी भी निर्दलिये lo गो के जितने के पक्ष में नही रही .और यह सफ़ेद पोश अपराध हमें नही दिखाई देता है ...................सरकार को चाहिए कि उमीदवार जो चाहे वही चुनाव चिन्ह दे दे और फिर आज तो साइबर का जमाना है ......वह से पता चल जायेगा कि कही दो लोगो को तो एक चुनाव चिन्ह नही मिल गया ....यह है हमारे लोक तंर के चुनाव की हकीकत ,जिस पर ना तो हम सोचना चाहते है और ना ही आवाज़ उठाना ...या यह भ्रष्टाचार नही है ........क्या आम आदमी के लिए विधान सभा और संसद का रास्ता वास्तव में जाता है ..अपने अधिकारों को पहचानिए और अखिल भारतीय अधिकार संगठन यही चाहता है कि सभी भारतीय अधिकारों का असली मतलब जाने और एक अपराध और मानवाधिकार उल्लंघन मुक्त समाज का निर्माण करे .....अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Saturday 31 December 2011

philosophy behind new year

समय का मतलब सिर्फ समय होता है .......यह हम है जो इसे घंटे , मिनट , सेकंड  में बाट कर अपने जीवन को सरल बनाने का प्रयास करते है .......समय को नही पता होता की आप ने कितने साल और घंटे जिए .वो तो सतत निरंतर है जो बस चलना जनता है .....पर हमें सुकून मिलता है जब हम समय का प्रबंधन करके यह जान लेते है कि इस दुनिया में हम कितना समय काट चुके है .हमारे इस प्रयास के शोध से ही आज यह जाना जा सका है कि हम कब तक इस दुनिया में रह चुके है या फिर अभी कितना जीना बाकी है क्यों कि अब हमने औसत आयु को इसी समय प्रबंधन के कारण जान लिया है ..यानि हम नए साल को नही मानते है  बल्कि हम उस समय को मानते है जो हमें इस दुनिया में रहने और न रहने के बीच का अन्तेर बताती है ,और यह उम्मीद करता है यह समय कि जो उसे समझ रहे है  वो आने वाले समय में अपने जीवन का कुछ ऐसा प्रबंधन करेंगे  कि भले ही वो जितने समय रहे पर वो समय पर अपने निशान छोड़ जाये .यही कारण है कि हम एक दुसरे को इस उम्मीद से शुभकामना देते है कि समय के प्रबंधन में हम इस वर्ष कुछ ऐसा करे कि समय का ये ३६५ दिन का कारवां एक मील का पत्थर बन जाये ...तो आइये हम समझे इस समय के दर्शन को इस आने वाले साल में और बन जाये एक मील का पत्थर ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन  आप सब के साथ मिल के आने वाले इस वर्ष को मानवता के लिए आदर्श बनाना चाहता है ....आप को समय का ३६५ दिन का उपहार मुबारक हो ..........अखिल भारतीय अधिकार संगठन